ये कैसी भक्ति है ?
सच कहूँ तो हम इंसान हमेशा भगवान से दया की भीख मांगते रहते हैं उनका आशीर्वाद चाहते हैं किन्तु सच तो ये है की हम इंसान ही कभी भगवान् की मूर्तियों पर जरा सी भी दया नहीं करते.. मैंने देखा कई बार मंदिरों में भगवव न की मूर्ति को कभी भी नहलाते हुए स्नान करते हुए वो स्नान इतना भयंकर होता है की लगता है की स्नान नहीं ये कोई मन के बवंडर का प्रतिसाद है पानी के अन्दर न जाने क्या क्या मिला हुआ होता है की पानी का रंग ही धूमिल हो जाता है फिर स्नान तक ही हम इंसानों की श्रध्धा सिमित नहीं आगे भगवांन की मूर्ति पर चन्दन को एइसे मला जाता है मानो पत्थर पर चटनी बनाई जा रही हो तिलक की कोई सीमा ही नहीं रखते लोग मूर्ति की नाक से लेकर सर की मांग तक का लम्बा तिलक और उस पर अक्षत (चावल)की वर्षा फिर वो चावल के दाने मूर्ति के सर पे जा रहे हैं या आखो में कुछ नहीं पता उसके बाद जब प्रसाद चढाते है हम तब मैंने देखा है की गणपति बाप्पा की sundh में इस तरह दबाके लड्डू भरते हैंकि दो दिन तक वो वहीं फंसा रहता है और उस लड्डू की वजह से रात भर बाप्पा के ऊपर हजारे कीड़े मकोड़े बैठते हैं और उस लड्डू का आनंद उठाते हैं और गणपति बाप्पा को न दिन का चैन न रात की नींद मिलती है ..
अगरबत्ती के पकेट्स प्रसाद के डब्बे सब मंदिर में इस तरह से फेंकते हैं लोग मनो मंदिर न हुआ कूड़ा दान हुआ ... और एक बात की जब जब बड़े त्यौहार होते हैं तब तब तो मानो भगवान की शामत आ जाती है . मैंने एक बार देखा था शिवरात्रि का दिन था सब एक बार में ही पुण्य कमा लेना च हते हो इस तरह से शिवलिंग के पास घेरे में पूजा कर रहे थे ठीक है पूजा करते तो कोई बात न थी किन्तु एकदूजे को धक्के देकर हर कोई पहले पुण्य कमाना चाहता था पर चलो ये भी माना की ठीक है पुण्य कमाना कोई बुरी बात नहीं ये उनकी श्रध्धा है , किन्तु शिवलिंग के सामने ३ से ४ लाइन जब गोलाकार में बन गई तब लोगो ने ५ वि लाइन बनाकर सबके ऊपर से शिवलिंग पर नारियल फेकना शुरू का दिया तब मेरे मन में एक सवाल उठा ये किसी भक्ति है? हम क्यों इतने बावले हो जाते हैं हम क्यों इतने अन्धविश्वासी हो जाते हैं ? हम क्यों सारा पुण्य शॉर्टकट में कमा लेना चाहते हैं हम ये क्यूँ नहीं देख पाते की जिस मूर्ति पर हम इस तरह के अत्याचार कर रहे हैं उसकी प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और जब हम एईसी पूजा करते हैं तब हम पुण्य के बदले पाप तो नहीं कर रहे ये हमें जरुर सोचना चहिये
मैं मानती हूँ की ये सब आपकी श्रध्धा है और समय आभाव भी कई बार एईसी पूजा की वजह बन जाता है किन्तु यदि आपके पास समय नहीं आप जब घर में हो शांत चित्त से सच्चे मन से भगवान का नाम लो वो शायद भगवन जल्दी सुनेंगे ..न की एईसी पूजा से .
दूसरी बात " अन्धविश्वास "...इस वजह से भी लोग बड़े त्योहारों में उमड़ पड़ते हैं मंदिरों में और पूजा के समय एईसी भूलें करते रहते हैं पर आपनी पूजा में आप अन्धविश्वास को जरा भी स्थान ना दे .. आपको यदि शिवलिंग पर दूध चढ़ाना ही है तो थोडा सा भगवन पर चढ़कर बाकि का गरीब के बच्चे को दें . मंदिरों में जब देखे की वहां फ्रूट्स याने की फलों का ढेर लग गया है तो आप आपने लाये फल गरीबों में बाटे..क्यूंकि वो जिन्दा भगवन ह तो है उसमे परमात्मा ह का ही वास है आपके पास यदि पैसा ज्यदा है तो किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को फ़ीस के पैसे दें ताकि उसका भविष्य उज्जवल हो ...
अंत में इतना कहूँगी की पूजा एइसे कीजिये की जिसमे अन्धविश्वास का कोई स्थान न हो ...
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