Re: मम्मीऽऽऽ...!
अब पढ़िए आगे और देखिए- मात्र अल्प विस्तार के द्वारा किस प्रकार एक गम्भीर लघुकथा हास्य में परिवर्तित हो गई-
सौतेली मम्मी पहले की तरह इन्टरनेट पर बच्चों को दूध पिलाने का गुर सीखने में लगी रही।
बच्चों ने रोते हुए कहा- 'मम्मी, एक बार आ जाओ, प्लीज़। नई मम्मी को दूध पिलाना सिखाकर फिर वापस चली जाना।'
मम्मी नहीं आई।
सौतेली मम्मी पहले की तरह इन्टरनेट पर बच्चों को दूध पिलाने का गुर सीखने में लगी रही।
बच्चों को पता था- मम्मी कहाँ मिलेगी और मम्मी ने बाद में फ़ोन पर कहा भी था- 'बच्चों, अगर तुम लोग यहाँ आ गए तो मैंने निर्णय लिया है- बिना किसी की परवाह किए तुम लोगों के साथ खेलूँगी-कूदूँगी और खुश रहूँगी।' बच्चे अपनी सौतेली मम्मी को लेकर मम्मी से मिलने के लिए चल दिए और रास्ते भर यह कहकर रोते रहे- ' मम्मीऽऽऽ...! तुम्हारी बहुत याद आ रही है। हम नई मम्मी को लेकर आ रहे हैं। मम्मीऽऽऽ...! नई मम्मी को जल्दी से दूध पिलाना सिखा दो। बहुत भूख लगी है। मम्मीऽऽऽ...! हम नई मम्मी के साथ आज रात ग्यारह बजे तक पहुँच रहे हैं। कहीं जाना मत। मम्मीऽऽऽ...!' (समाप्त)
Last edited by Rajat Vynar; 23-07-2015 at 11:29 AM.
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