Re: कि जिन्दा रहूँ ये जतन कर रहा हूँ
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Originally Posted by आकाश महेशपुरी
ग़ज़ल/ गीतिका
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मैं' चिन्ता का' ओढ़े कफन कर रहा हूँ
कि जिन्दा रहूँ ये जतन कर रहा हूँ...
मैं' आगे बढ़ूँ सोच मेरी है' लेकिन
बड़ी तीव्रता से पतन कर रहा हूँ
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आपकी गीतिका रचना बेशक अद्वितीय है. उक्त पंक्तियाँ पढ़ कर मुझे अपनी एक रचना की निम्नलिखित पंक्तियाँ याद आ रही हैं:
ऊंचने के लोभ में नीचते गये
फिर भी जितना बन पड़ा खींचते गये
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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