Re: ये कैसी भक्ति है ?
शायद आप अभी मेरी बात ठीक से समझ नहीं पाईं। ईश्वर के सर्वव्यापी होने के सिद्धान्त को सभी जानते हैं, किन्तु घर पर बने मन्दिर में पूजा करने के फल में और सिद्धपीठ मंदिर में पूजा करने के फल में अन्तर होता है। यही कारण है यदि स्वयं विष्णु भगवान आकर भक्तों के घर में बने मन्दिर में बैठ जाएँ और रोज़ सुबह-शाम अपने हाथ से भक्तों को प्रसाद खिलाएँ तो भी भक्तगण तब तक तृप्त नहीं होंगे जब तक उन्हें तिरुपति के मंदिर के दर्शन का टिकट न मिल जाए। घर के मंदिर में खुद भगवान बैठे हैं जैसी बातों पर कौन यकीन करेगा? लोग तो तभी यकीन करेंगे जब आप तिरुपति में दर्शन करके बड़े साइज़ वाला लड्डू प्रसाद के रूप में उनके हाथ में न थमा दें। नहीं तो आपको लोग नास्तिक और ईश्वर विरोथी ही समझेंगे। अतः दर्शन का टिकट पाने के लिए भक्तगण संघर्ष करते ही रहेंगे।
भगवान के ऊपर नारियल इत्यादि फेंके जाने की घटना से आप व्यथित लग रही हैं, किन्तु हम तो यही समझते हैं कि यह तो भगवान की इच्छा है। भगवान को ज़रा भी भक्तों के नारियल फेंकने से कष्ट होता तो वे स्वयं इस पद्धति को परिवर्तित करके भक्तों को दर्शन देते। भगवान कोई मनुष्प तो हैं नहीं जो उन्हें नारियल जैसी छोटी वस्तु से चोट लग जाए, क्योंकि ईश्वर को सर्वशक्तिमान कहा गया है। हम मनुष्य भगवान के ऊपर हिमालय पर्वत फेंक कर भी उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते।
|