27-10-2015, 10:06 PM
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#1151
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
Quote:
Originally Posted by rajnish manga
कभी वह सामने आये तो यह आलम भी होता है
नज़र मिलने को मिल जाती है पहचानी नहीं जाती
(ज़िया अली)
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तेरा हुआ ज़िक्र तो हम तेरे सजदे में झुक गए,
अब क्या फर्क पड़ता है मंदिर में झुक गए या मस्जिद में झुक गए।
(अज्ञात)
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