Re: आनन्द कहाँ है?
[QUOTE=rajnish manga;556042]आनन्द कहाँ है?
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दार्शनिक जैरोल्ड की परिभाषा के अनुसार सन्तोष निर्धनों का निजी बैंक है, जिसमें पर्याप्त धन भरा रहता है। जार्ज इलियट का मत भी इसी से मिलता जुलता है। वे कहते थे- “असंतोषी कभी अमीर नहीं हो सकता और संतोष के पास दरिद्रता फटक नहीं सकती।” उदार और दूरदर्शी मस्तिष्कों में संतोष का वैभव प्रचुर मात्रा में भरा रहता है। आनन्द की तलाश करने वालों को उसकी उपलब्धि सन्तोष के अतिरिक्त और किसी वस्तु या परिस्थिति में हो ही नहीं सकती। सुकरात ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था- “संतोष ईश्वर प्रदत्त सम्पदा है और तृष्णा अज्ञान के अनुसार द्वारा थोपी गई निर्धनता”
परिणाम को आनंद का केन्द्र न मानकर यदि काम को उत्कृष्टता की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जाय तो सदा उत्साह बना रहेगा और साथ ही आनन्द भी। कलाकार ब्राउनिंग करते थे- “हम किसी कार्य को छोटा न माने वरन् जो भी काम हाथ में है उसे इतने मनोयोग के साथ पूरा करें कि उसमें कर्त्ता के लिए श्रेय और सम्मान का कारण बनते हैं, भले ही वे अधिक महत्वपूर्ण न हो।” मनस्वी रस्किन की उक्ति है “काम के साथ अपने को तब तक रगड़ा जाय जब तक कि वह संतोष की सुगंध न बखेरने लगे।” वाल्टेयर ने लिखा है - “किसी काम का मूल्याँकन उसकी बाजारू कीमत के साथ नहीं, वरन् इस आधार पर किया जाना चाहिए कि उसके पीछे कर्ता का क्या दृष्टिकोण और कितना मनोयोग जुड़ा रहा है। अब्राहम लिंकन का यह कथन कितना तथ्यपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा था - “हम जिस काम में जितना रस लेते हैं और मनोयोग लगाते हैं वह उतना ही अधिक आनन्ददायक बन जाता है।”
सार्थक लेख ... बहुत बहुत धन्यवादभाई हम सबसे शेयर करने के लिए . सही लिखा और कहा है हमारे बड़े बड़े मनीषियों ने , की आनंद का मापदंड पैसा नहीं अपितु किसी भी छोटे से छोटे काम में आन्तरिक आनंद का सबसे पहला महत्व होता है ..
पैसों से भौतिक सुख सुविधा मिलती है किन्तु आत्मिक आनंद नहीं कार्य जो भी हो उससे इंसान को पहले आत्मिक आनंद मिलना ही चहिये .
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