Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by suraj shah
मैं कब का टूट के 'हैदर'बिखर गया होता
ख़ुदा का शुक्र तेरे दर्द का सहारा था
(जलील हैदर लाशारी)
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था अँधेरा जहां ज़माने से
मैं वहाँ पर दिया जला आया
ज्वार रोका है कैसे पूछो मत
चाँद जब सोलहों कला आया
(केशव शरण)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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