Re: युद्ध और शांति
“बस, कल! कल! मेरा मन कहता है कल मैं सब दिखा दूंगा, क्या कुछ कर सकता हूं मैं|”
उसकी कल्पना में उभरता है रणभूमि का दृश्य – सभी सेनापति असमंजस में फंसे हुए हैं| बस इस क्षण की ही तो उसे कब से प्रतीक्षा थी - आ गया वह सौभाग्यशाली क्षण!
वह दृढ़ स्वर में, स्पष्ट शब्दों में प्रधान सेनापति के सामने अपने विचार रखता है| सभी चकित हैं कि उसकी बातें कितनी सटीक हैं, किंतु कोई भी उन पर अमल करने को तैयार नहीं है| तो फिर वह अकेला ही पूरी डिविज़न को हमले में ले जाता है और अकेला ही विजय पाता है|
अगली लड़ाई भी वह अकेला ही जीत लेता है|उसे प्रधान सेनापति का पद सौंपा जाता है|
“फिर आगे?” वह अपने आप से पूछता है और स्वयं ही उत्तर देता है: “मैं नहीं जानता, आगे क्या होगा, न जान सकता हूं, न जानना चाहता हूं; पर मैं यश पाना चाहता हूं, इसी की खातिर जी रहा हूं| हे परमात्मा! क्या करूं मैं, मुझे बस यश चाहिए! मेरे पिता, बहन, पत्नी – सभी बहुत प्यारे हैं मुझे, किंतु यश के एक पल की खातिर मैं सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हूं| कितनी भयानक, कितनी अस्वाभाविक है यह बात, पर यही सच्चाई है, मैं सभी लोगों पर विजय पाना, सबसे ऊपर उठना चाहता हूं!”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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