तीस साल बाद
तीस साल बाद
लेखक: स्व. रवींद्र कालिया
टॉयलेट से फारिग होकर ही वह किसी आगन्तुक से मिलना पसंद करता है। उसने खिन्न होते हुए कहा,
'' इतनी सुबह ? मुवक्किल होंगी। दफ्तर में श्रीवास्तव होगा, उससे मिलवा दो।''
'' वे तो आपसे ही मिलना चाहती हैं। शायद कहीं बाहर से आई हैं। ''
'' अच्छा! ड्राईंगरूम में बैठाओ, अभी आता हूँ। ''
कपिल टॉयलेट में घुस गया। इत्मीनान से हाथ मुँह धोकर जब वह नीचे आया तो उसने देखा, सोफे पर बैठी दोनों महिलाएं चाय पी रही थीं। एक सत्तर के आर्सपास होगी और दूसरी पचास के। एक का कोई बाल काला नहीं था और दूसरी का कोई बाल सफेद नहीं था, मगर दोनों चश्मा पहने थीं। कपिल को आश्चर्य हुआ। कोई भी महिला उसे देख कर अभिवादन के लिए खडी नहीं हुई। बुजुर्ग महिला ने अपने पर्स से एक कागज निकाला और कपिल के हाथ में थमा दिया।
'' यह खत आपने लिखा था ? '' उसने कडे स्वर में पूछा।
कपिल ने कागज ले लिया और चश्मा लगा कर पढने लगा। भावुकता और शेर्रओशायरी से भरा एक बचकाना मजमून था। उस कागज क़ो पढते हुए सहसा कपिल के चेहरे पर खिसियाहट भरी मुस्कान फैल गई। बोला,
'' यह आपको कहाँ मिल गया? बहुत पुराना खत है। तीस बरस पहले लिखा गया था। ''
'' पहले मेरी बात का जवाब दीजिए, क्या यह खत आपने लिखा था ? '' बुजुर्ग महिला ने उसी सख्त लहज़े में पूछा।
'' हैन्डराइटिंग तो मेरी ही है। लगता है, मैंने ही लिखा होगा। ''
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 07-02-2016 at 03:58 PM.
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