Re: भाग्य और पुरुषार्थ
लक्कड़हारे को अपनी पत्नि की बात समझ में आ गई और दोनो ने कड़ी मेहनत से चन्दन की लकड़ियों को काटा और दूर-दराज के राजाओं को बेंच कर जंगल की सारी रकम एक माह में चुका दी और नये पौधों की खेप भी रूपवा दी ताकि उनका काम आगे भी चलता रहे।
इस बीच पड़ौसी देश का राजा समर्थवर्मन जिसका राज्य राजकुमारी के पिता के राज्य से अधिक शक्तिशाली था, उसने इस राज्य पर अपना अधिकार जमा लिया. राजकुमारी के माता पिता और भाई संबंधी अपनी जान बचाने के लिये महल के गुप्त रास्ते से बाहर निकल गए. काफी समय तक वे अन्य छोटे छोटे राजाओं से मिलते रहे लेकिन समर्थवर्मन से लोहा लेने की किसी में ताकत नहीं थी. इस प्रकार अपना राज्य वापिस प्राप्त करने के उनके सभी प्रयास विफल हो गए. इन कोशिशों में कई वर्ष गुजर गए. जब वे बिलकुल निराश हो गए और पास का धन सम्पत्ति भी खत्म हो गई तो और कोई चारा न पाकर उन्होंने मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करने का मन बना लिया. राजकुमारी के माता पिता और अन्य परिवारजन दिन भर मेहनत मजदूरी करते और रात को अपनी झोंपड़ी में आ जाते. उन्होंने इसे ही अपना भाग्य मान कर स्वीकार कर लिया.
इस बीच, कई वर्षों की लगातार मेहनत, लगन व ईमानदारी के फलस्वरूप लक्कड़हारा और राजकुमारी भी धीरे धीरे धनवान हो गए। लक्कड़हारा और राजकुमारी ने अपना महल बनवाने की सोच एक-दूसरे से विचार-विमर्श करके काम शुरू करवाया। लक्कड़हारा दिन भर अपने काम को देखता और राजकुमारी अपने महल के कार्य का ध्यान रखती। एक दिन राजकुमारी अपने महल की छत पर खडी होकर मजदूरो का काम देख रही थी कि अचानक उसे अपने महाराज पिता और अपना पूरा राज परिवार मजदूरो के बीच मजदूरी करता हुआ नजर आता है।
राजकुमारी अपने परिवारवालों को देख सेवको को तुरंत आदेश देती है कि वह उन मजदूरो को छत पर ले आये। सेवक राजकुमारी की बात मान कर वैसा ही करते हैं। महाराज अपने परिवार सहित महल की छत पर आ जाते हैं और अपनी पुत्री को महल में देख आश्चर्य से पूछते हैं कि तुम महल में कैसे?
राजकुमारी अपने पिता से कहती है कि- महाराज… आपने जिस जंगल को नीलाम करवाया, वह हमने ही खरीदा था क्योंकि वह जंगल चन्दन के पेड़ों का था।
और फिर राजकुमारी ने सारी बातें राजा को कह सुनाई। अंत में राजा ने स्वीकार किया कि उसकी पुत्री सही थी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 30-04-2016 at 12:12 PM.
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