Re: पानी और पर्यावरण
आज के साहित्य-साधक की यह ‘पर्यावरण-चिन्ता’ इक्कीसवीं सदी का ‘चिन्तन’ बनसकी, तो शायद आने वाले विश्व-मानव की जीवन-रक्षा हो सकेगी, अन्यथा राजनीतिके पण्डितों ने तो चीखना शुरूकर दिया है-
‘अगला विश्व-युद्ध ‘पानी’ के लिए ही लड़ा जाएगा।’
गीतकार डॉ. ब्रहमजीत गौतम का एक बड़ा ही मोजू गीत है ‘जल ही जीवन है,’ जिसमें उनकी ‘पर्यावरण-चिन्ता’ का रूप देखते ही बनता है। मेरा मन है किपर्यावरण के प्रहरियों के समक्ष यह गीत पूरा ही आ जाए, ताकि ‘जल और जंगल’ के विनाश की गाथा हमारी युवा-पीढ़ी भी तो जान सके।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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