Re: नौ साल छोटी पत्नी
तृप्ता की कमीज पसीने से देह पर चिपकती जा रही थी। और गर्दन से पसीने केकतरे चू कर कालर बोन पर ऐसे रेंग रहे थे, जैसे मेह के बाद बिजली की तारोंपर पानी रेंगता है। उसने कमीज के पल्लू से मुँह पोंछा और बोली, ‘आज तो बहुत गर्मी है।’फिर उसने ट्रंक को खाट के नीचे सरकाते हुए कहा, ‘मैं तो समझी थी, प्रकाश खाना लेने आया होगा, आप इस समय कैसे आ गये?’फिर उसने कुशल के चेहरे की ओर देखते हुए पूछा, ‘तबियत तो ठीक है?’
कुशल सोचने लगा कि यदि वह तृप्ता के स्थान पर होता, तो इस समय कैसे आ गये के स्थान पर ‘कहाँ से टपक पड़े', कहता। तृप्ता को उत्तरोत्तर सुर्ख होते देख कर और ढूँढ़ने पर भी न मिलनेके अंदाज में इधर-उधर घूमते और दृष्टि दौड़ाते देख कर कुशल ने जेब से माचिसनिकाल कर तृप्ता की ओर फेंकते हुए कहा, ‘यह लो।’
तृप्ता ने माचिस दबोच ली और बोली, ‘आप कैसे जान गये थे कि मैं माचिस ढूँढ़ रही थी।’
कुशल को मालूम था कि तृप्ता माचिस नहीं ढूँढ़ रही थी, बल्कि छोटी-सी बात कोले कर परेशान हो रही थी। उसने केवल उसकी घबराहट कम करने के लिए ही माचिसफेंकी थी। फिर उसने कहा, मैं जानता था, स्टोव पर तुम्हारी नजर नहीं जायेगी। हालाँकि तुम्हें मालूम है कि माचिस वहीं पड़ी रहती है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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