Re: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर
15 अगस्त की एक और कविता
इन्टरनेट से साभार: असलम चौहान
आबाद था आबाद है आबाद रहेगा
ये मुल्क तो आज़ाद है आज़ाद रहेगा
ऐ हिन्दू मुसलमां सुनों सिख और ईसाई
हमको जो लड़ायेगा वो बर्बाद रहेगा
हंसते हुए इस मुल्क पे जां जिसने गंवाई
उन वीर शहीदों का सिला याद रहेगा
हो जाए करम तेरा खुदा मुल्क पे मेरे
तो मुल्क में हर कोई यहां शाद रहेगा
है कितना हंसीं देखो तिरंगा ये हमारा
मांगी है दुआ रब से ये आबाद रहेगा
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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