Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by rajnish manga
था अँधेरा जहां ज़माने से
मैं वहाँ पर दिया जला आया
ज्वार रोका है कैसे पूछो मत
चाँद जब सोलहों कला आया
(केशव शरण)
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यही सोच कर बुरे वक़्त को पूज लिया करता हूँ मैं
इसी बहाने दिल को अपने समझाना हो जाता है
दिल के इस दीवानेपन को आखिर आप कहेंगे क्या
अच्छी ग़ज़ल कहीं सुन ले तो दीवाना हो जाता है
(सुरेंद्र चतुर्वेदी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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