संवर जायेंगे ये हालात शायद
संवर जायेंगे ये हालात शायद
संवर जायेंगे ये हालात शायद
बदल जायेंगे दिन औ’ रात शायद
समझ लेते हैं वो तकलीफ़ मेरी
मुक़र्रर सुनते हैं जब बात शायद
नए क़ानून से वाकिफ़ नहीं हैं
सुधर जायेंगे ये आलात शायद
शब्दार्थ: मुक़र्रर = दोबारा / आलात = औजार, उपादान
(रजनीश मंगा)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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