Re: कहानी का रूपान्तरण
तो यह था नानावटी के मुकदमे में प्रस्तुत किए गए बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष के प्रारूपों का हिन्दी सारांश जिससे पाठकगण नानावटी के मुकदमे की कहानी को भली-भाँति समझ सकें। नानावटी के मुकदमे में अभियोजन पक्ष की ओर से भारत के जाने-माने वकील राम जेठमलानी और बचाव पक्ष की ओर से कार्ल खण्डालावाला खड़े थे। हमारे अनुसार तो बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष, दोनों का प्रारूप बड़ा ही लचर होने के कारण अत्यन्त हास्यास्पद रहा। एक ओर बचाव पक्ष ने प्रेम के शरीर पर लिपटे तौलिए की स्थिति पर ध्यान दिए बिना हाथापाई होने का लचर तर्क प्रस्तुत किया जिसे अभियोजन पक्ष ने बड़ी आसानी के साथ काट दिया। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने नानावटी पर 'हत्या करने के बाद न घबड़ाने' जैसा हास्यास्पद आरोप लगाया। नानावटी एक साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि नौसेना के एक बहादुर कमाण्डर थे। नौसेना के एक बहादुर कमाण्डर से थर-थर काँपने और घबड़ाने की अपेक्षा करना हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? अभियोजन पक्ष ने नौसेना मुख्यालय से बन्दूक और गोलियाँ प्राप्त करने की घटना को इरादतन हत्या के आरोप से जोड़ दिया। बचाव पक्ष चाहता तो बड़ी आसानी से यह कहकर अभियोजन पक्ष के आरोप को खारिज कर सकता था कि नानावटी प्रेम से एक बेहद खतरनाक, गम्भीर और संवेदनशील मुद्दे पर बातचीत करने जा रहा था। प्रेम के कारण उसकी जान को कभी भी खतरा पैदा हो सकता था। अतः इरादतन हत्या के लिए नहीं, बल्कि आत्मसुरक्षा के लिए नानावटी बंदूक अपने साथ लेकर गया था।
जो भी हो, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए 'इरादतन हत्या' के तर्क को स्वीकार करते हुए नानावटी को उम्रकैद की सज़ा सुनाई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
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