ग़ज़ल- नहीं सोचा वही...
ग़ज़ल- नहीं सोचा वही...
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नहीं सोचा वही हर बार निकला
सितमगर तो मेरा ही यार निकला
मुहब्बत से भरीं आँखें ये तेरी
लबों से क्यूँ मगर इंकार निकला
मुझे मिलती यकीनन आज मंजिल
किनारा ही मगर मझधार निकला
कलेजा ही हमारा फट गया ये
कि जबसे फूल है अंगार निकला
हँसाता एक बन्दा जो सभी को
हकीकत में बहुत बेजार निकला
जिसे 'आकाश' कहते थे भवँर है
वही बस एक है पतवार निकला
ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
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वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरनाथ
जनपद- कुशीनगर
पिन- 274304
मोबाइल- 9919080399
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