Re: बॉलीवुड शख्सियत
राज कपूर / Raj Kapoor
एक निर्देशक के रुप में राज कपूर की दृष्यों को विजुएलाइज करने की क्षमता असाधारण थी। आवारा के ड्रीम सीक्वेंस वाले गाने घर आया मेरा परदेसी पर तो बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है। उनकी शुरु की अन्य फिल्मों में भी बहुत कुछ ऐसा देखने को मिलता है जो हिन्दी सिनेमा में किसी ने पहली बार ही अपनाया था। श्री 420 में ही एक प्रसंग है जहाँ नरगिस कैसीनो से भाग कर घर वापस आ जाती हैं और बाद में नशे में चूर राज कपूर भी उनके घर पहुँचते हैं और उन्हे जुए में जीते रुपये दिखाते हैं।
दोनों में अच्छाई और बुराई को लेकर तर्क होता है और नरगिस उन्हे वापिस जाने को कहती हैं। राज कपूर जाने के लिये मुड़ते हैं पर लड़खड़ा कर नीचे गिर जाते हैं। नरगिस दो तरह की मानसिकता से घिरी हुयी खड़ी हैं। उनके व्यक्तित्व का एक भाग अपने प्रेमी को उठाना चाहता है और दूसरा भाग एक स्वाभिमानी और ईमानदार युवती का है जो अपराध के रास्ते पर कदम रख चुके राज के साथ नहीं चल सकती। नरगिस के अस्तित्व औरउनके व्यक्तित्व की इस विभक्ति को राज कपूर दिखाते हैं, ऐसे दिखाते हैं कि वास्तविक नरगिस दुखी खड़ी हैं और उनके अंदर से एक और नरगिस निकल कर बाहर आती है और राज को रोकने के लिये गाना गाती है।
इसी फिल्म के अन्य दृष्य में जहाँ राज कपूर बहुत परेशान हैं उनकी परेशानी को बेहद अच्छे ढ़ंग से दर्शाया गया है और कैसे वे परदे पर बैठे दिखायी देंगे और क्या उनके दिमाग में चल रहा है वह बीती हुयी घट्नाओं के समय बोले गये संवादों को पार्श्व में सुनाकर दृष्य को प्रभावी बनाया गया है। पूरा सीक्वेंस जिसमें कई अलग अलग दृष्य हैं एक निरंतरता लिये हुये है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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