Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
दूसरे वर्ष मलिका के फिर एक पुत्र पैदा हुआ। इस बार भी उसकी बहनों ने वैसी ही दुष्टता की। बच्चे को बाहर जा कर नहर में बहा दिया और मलिका के नीचे एक मरा बिल्ली का बच्चा ला कर रख दिया। महल में फिर मातम सा छा गया और बादशाह का क्रोध फिर आसमान छूने लगा और उसने मलिका का वध कराने की बात फिर कही। इस बार भी दयालु मंत्री ने समझा-बुझा कर उसे मलिका को मरवाने से रोका। मलिका पहले से अधिक अपमान की स्थिति में रहने लगी। इधर जिस टोकरी में बच्चा रखा था वह फिर बागों के दरोगा के हाथ लगी। वह इस बच्चे को भी पहले की भाँति पालने लगा।
कुछ दिनों बाद मलिका को फिर गर्भ रहा। बादशाह को आशा थी कि इस बार की संतान ठीक-ठीक होगी। लेकिन दोनों दुष्ट बहनें अब भी वहाँ मौजूद थीं और उनके मुँह खून लग चुका था। इस बार मलिका के बेटी हुई। मलिका की बहनों ने उसे भी नहर में बहा दिया। उस टोकरी को भी बागों के दारोगा ने निकलवा लिया और ईश्वरीय देन समझ कर इसका पालन-पोषण करने लगा। उधर दुष्ट बहनों ने मशहू्र किया कि मलिका ने छछुंदर जना है।
इस बार बादशाह अपना क्रोध बिल्कुल नहीं सँभाल पाया। उसने कहा कि ऐसी जीव-जंतु पैदा करनेवाली रानी से बदनामी ही होगी, इसे जरूर मरवा देना होगा। दयालु मंत्री ने उसके पैरों पर गिर कर कहा, पृथ्वीपाल, आप कुछ न्याय-अन्याय का विचार करें। इसमें रानी का क्या अपराध है? आप की बदनामीवाली बात ठीक है। तो इसके लिए यह करें कि मलिका के पास जाना छोड़ दें।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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