Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
फिर बादशाह ने गायन-वादन आरंभ करने का आदेश दिया। अपने काल के सर्वश्रेष्ठ गायक और वादक आ कर उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कला का प्रदर्शन किया। फिर नाच का इंतजाम किया गया और रूपसी कलाकार नृत्यांगनाओं ने मनमोहक नृत्य दिखा कर सभी का चित्त प्रसन्न किया। फिर नाट्यकारों और विदूषकों ने बादशाह और दूसरे मेहमानों का मनोरंजन किया। यह कार्यक्रम कई घंटों तक चलते रहे और जब वे समाप्त हुए तो संध्या होने लगी थी।
अब बहमन और परवेज ने अपने घर जाने की अनुमति ली। बादशाह ने कहा, कल तुम फिर शिकारगाह में मेरे साथ शिकार खेलने आना। शिकार के बाद कल भी मेरे साथ यहाँ भोजन करना। उन दोनों ने कहा, हुजूर की हमारे ऊपर बड़ी कृपा है। हम शिकारगाह में जरूर आएँगे किंतु हमारा निवेदन है कि जब आप शिकार खत्म करें तो हमारी कुटी में आ कर और हमारा रूखा-सूखा भोजन ग्रहण करके हमारा मान बढ़ाएँ। बादशाह तो उन से अति प्रसन्न था ही, उसने तुरंत ही उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उसने कहा, मुझे तुम्हारे यहाँ आ कर प्रसन्नता होगी। मैं तुम्हारी बहन से मिल कर भी बहुत प्रसन्न हूँगा क्योंकि तुम्हारी बातों से पता चला है कि वह बहुत बुद्धिमती और व्यवहारकुशल है। उसका मेहमान बन कर मुझे बड़ी खुशी होगी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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