Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
बहमन और परवेज घर पहुँचे तो उन्होंने परीजाद को बताया कि बादशाह ने सभी के समक्ष हमारा बड़ा सत्कार किया और यह भी वादा किया है कि कल शिकार से लौट कर वह हमारे घर आएगा और यहाँ भोजन करेगा। उन्होंने कहा, हम ने बादशाह को दावत तो दे दी है लेकिन अब यह भी जरूरी है कि उसकी प्रतिष्ठा के अनुकूल साज-सामान और भोजन का प्रबंध किया जाए। परीजाद ने भाइयों के हौसले की प्रशंसा की और कहा, तुम लोग चिंता न करो। मैं बोलनेवाली चिड़िया से सलाह ले कर सब प्रबंध कर रखूँगी। फिर वह चिड़िया का पिंजड़ा अपने कमरे में ले गई। उसने चिड़िया को पूरा हाल बताया तो उसने कहा, मालकिन, यह बड़े सौभाग्य की बात है कि बादशाह आ रहे हैं। तुम उनके स्वागत-सत्कार का जो भी प्रबंध कर सको वह यथेष्ट होगा। किंतु मेरे कहने से एक विशेष भोजन बनवाओ। तुम खीरे का गाढ़ा शोरबा बनवाओ और वह जिस प्याले में बादशाह के सामने लाया जाए उसमें शोरबे की सतह पर अनबिंधे मोती इस तरह बिछे हों जैसे पाक क्रिया के दौरान उसी सतह पर आ गए हों। परीजाद ने हैरान हो कर कहा, यह किस प्रकार का व्यंजन होगा? मेरी तो कल्पना में भी नहीं आता कि कोई व्यक्ति शोरबे के साथ मोती खा सकता है। बादशाह क्या कहेंगे? फिर अनबिंधे मोती मिलेंगे भी कहाँ से?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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