Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परीजाद ने कहा, यह लंबी बात है। खड़े-खड़े नहीं बताई जा सकती। अंदर चलो तो बताऊँगी। वे लोग उसके साथ घर के अंदर आए तो उसने कहा, कल शाम को मैंने बोलनेवाली चिड़िया से सलाह ली थी कि बादशाह की खातिरदारी के लिए क्या करना चाहिए। उसने सलाह दी कि और साज-सामान और व्यंजन तो ऐसे हों जैसे बादशाहों-अमीरों के खाने में होते हैं। लेकिन उसे एक प्याले में खीरे का गाढ़ा शोरबा भी दिया जाए जिसकी सतह पर अनबिंधे मोती पटे पड़े हों। मैंने बहुत विरोध करना चाहा कि बादशाह इसे मजाक समझेंगे और क्रुद्ध भी हो सकते हैं। लेकिन वह नहीं मानी, अपने सुझाव पर अड़ी रही। वह कहने लगी कि यह अजीब बात करने के लिए मैं बहुत सोच-समझ कर तुमसे कह रही हूँ और आश्वासन देती हूँ कि बादशाह नाराज नहीं होंगे और इस सब का नतीजा अच्छा ही निकलेगा। तुम जानते हो कि मुझे उसकी बात पर विश्वास है। उसी ने मुझे गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी दिलवाया है और उसी की सलाह से तुम दोनों और तुम्हारे साथ बीसियों और आदमी दोबारा जिंदगी पा सके हैं। इसीलिए मैं उसकी किसी बात को नहीं टालती। उसी की सलाह पर मैं अपने जंगल के उस पेड़ के पास खुदाई करा कर मोतियों का डिब्बा लाई हूँ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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