Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
किंतु वह समझ न पाया कि किसकी सूरत है। इसके बाद परीजाद बादशाह को भवन के अंदर ले गई। उसने बादशाह को अपने सुंदर और विशाल आवास के हर भाग को दिखाया। बादशाह ने पूरा भवन देख कर कहा, बेटी, तुमने अपने महल की सजावट और रखरखाव खूब कर रक्खा है। अब मुझे अपना बाग भी दिखाओ। कोई आदमी मुझसे तुम्हारे बाग की बड़ी तारीफ कर रहा था।
परीजाद ने उस कक्ष का, जिसमें यह सभी लोग मौजूद थे, एक ओर का दरवाजा खोला तो हरा-भरा बाग दिखाई दिया। बाग में वैसे तो सब कुछ सुंदर था किंतु बादशाह की नजर फव्वारे पर अटक गई। सुनहरा पानी काफी ऊँचाई तक उछल रहा था। बादशाह ने उसे पास से देखना चाहा। परीजाद उसे फव्वारे के पास ले गई। बादशाह ने कहा, इसके सुनहरे पानी का हौज कहाँ है और किस चीज के जोर से यह फव्वारा इतना ऊँचा उछलता है। यहाँ तो मुझे कोई चीज दिखाई नहीं देती न कोई हौज...।
वह अपनी बात पूरी करने के पहले ही चौंक कर एक ओर देखने लगा जहाँ से सुमधुर संगीत का ध्वनि आ रही थी। उसने कहा, क्या तुम लोगों ने बाग के अंदर भी गाने-बजाने का प्रबंध कर रखा है और यह कौन गायक है जिसकी आवाज शाही गवैयों से भी अच्छी है? परीजाद हँस कर बोली, नहीं हुजूर, कोई गवैया नहीं है। यह आदमी नहीं, पेड़ गा रहे हैं। बादशाह की भौंहें चढ़ गईं, उसने सोचा परीजाद हँसी कर रही है। लेकिन परीजाद ने कहा, आइए, आपको दिखाऊँ। यह कह कर वह बादशाह को गानेवाले पेड़ के पास ले गई। बादशाह हक्का-बक्का रह गया। मधुर संगीत वास्तव में पेड़ ही से निकल रहा था। कुछ देर तक बादशाह के मुँह से कोई आवाज नहीं निकली। कभी फटी-फटी आँखों से गानेवाले पेड़ को देखता कभी सुनहरे फव्वारे को।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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