Re: मुहावरों की कहानी
सावन के अंधे
आखिर मुझे सोचना चाहिये था कि जिस व्यक्ति के जीवन में अधेड़ावस्था तक कभी बसंत बहार न आई हो और स्टूडेंट लाइफ से लेकर अभी तक अनेक कलाबाजियां दिखाने के बावजूद जिसे किसी गधी ने भी घास न डाली हो उसे आज के हालातों में कोई वचुर्वल दुनिया की कमसिना क्यों कर चारा डालने लगी। मेरे एक निजी मित्र के अनुसार आजकल 13-14 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते लड़के-लड़कियां अपना कोई न कोई जोड़ा बना ही लेते हैं। ऐसे में कोई मुझ जैसा अक्ल का मारा व्यक्ति यह सोचे कि इस उम्र तक कोई कुंवारी कली उसके लिये पलक पांवडे़ बिछाये बैठी होगी और उसे लिफ्ट देगी तो यह बेवकूफी और अक्लबंदी की पराकाष्ठा ही होगी।
मैं अपने मित्र की बात पर विश्वास करता पर कैसे? हमारी तो शादी ही 13-14 की उम्र में हो गई थी पर यहां तो सठियाने की उम्र में पहुंचने के बावजूद आज तक अपनी धार्मिक पत्नी तक के साथ जोड़ी बना पाने में कामयाबी मुयस्सर नहीं हो सकी। और वेलेंनटाइन डे को तो छोड ही दीजियेे करवा चौथ जैसे त्यौहारों पर भी पत्नी बख्शने के मूड में नहीं दिखाई देती है।
कहते हैं कि सावन के अंधे को हर समय हरा ही हरा नज़र आता है और यदि कोई काली अंधेरी रात में अंधा हुआ हो तो उसे भला क्या नज़र आयेगा, अंधेरा ही अंधेरा ना! मुझमे और मेरे निजी दोस्त में बस यही फर्क है। वह सावन का अंधा है तो मैं अंधरी रात का अंधा। जहां तक मुझे याद आता है कि मेरे साथ यह सिलसिला बचपन में ही शुरू हो गया था। कहते हैं 12 वर्ष में तो घूरे के दिन भी फिर जाते हैं परन्तु वह दिन है और आज का दिन है पचासों सावन बीते, अनेक बसंत आये और गये पर इस वीराने में बहार नहीं आने वाली थी तो नहीं ही आई। अब इसे आप समय का दोष समझें या मेरे मुकद्दर का पर जो समय बीत गया वह अब अपने नये संस्करण या शोले फिल्म की तरह थ्री डी में तो आने से रहा। है ना सही बात?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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