Re: महाभारत के पात्र: भीष्म पितामह
महाभारत के पात्र: भीष्म पितामह
पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय को हर लिया। जब महर्षि वसिष्ठ अपने आश्रम आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बात जान ली। वसुओं के इस कार्य से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।महाभारत के अनुसार गंगापुत्र भीष्म वह द्यौ नामक वसु थे। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे।
भीष्म पितामह के पिता का नाम राजा शांतनु था। समय बीतने पर शांतनु के यहां सात पुत्रों ने जन्म लिया लेकिन सभी पुत्रों को उस स्त्री ने गंगा नदी में डाल दिया। शांतनु यह देखकर भी कुछ नहीं कर पाएं क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे इसका कारण पूछा तो यह मुझे छोड़कर चली जाएगी। आठवां पुत्र होने पर जब वह स्त्री उसे भी गंगा में डालने लगी तो शांतनु ने उसे रोका और पूछा कि वह यह क्यों कर रही है? उस स्त्री ने बताया कि वह गंगा है तथा जिन पुत्रों को उसने नदी में डाला था वे वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था। आपने शर्त न मानते हुए मुझे रोका इसलिए मैं अब जा रही हूं। ऐसा कहकर गंगा शांतनु के आठवें पुत्र को लेकर अपने साथ चली गई।
गंगा जब शांतनु के आठवे पुत्र को साथ लेकर चली गई तो राजा शांतनु बहुत उदास रहने लगे। इस तरह थोड़ा और समय बीता। शांतनु एक दिन गंगानदी के तट पर घूम रहे थे। वहां उन्होंने देखा कि गंगाजी में बहुत थोड़ा जल रह गया है और वह भी प्रवाहित नहीं हो रहा है। इस रहस्य का पता लगाने जब शांतनु आगे गए तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर व दिव्य युवक अस्त्रों का अभ्यास कर रहा है और उसने अपने बाणों के प्रभाव से गंगा की धारा रोक दी है।
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|