Re: महाभारत के पात्र: भीष्म पितामह
महाभारत के पात्र: भीष्म पितामह
भीष्म के जीवन के 16 रहस्य
चौथा रहस्य...
एक दिन देवव्रत के पिता शांतनु यमुना के तट पर घूम रहे थे कि उन्हें नदी में नाव चलाते हुए एक सुन्दर कन्या नजर आई। शांतनु उस कन्या पर मुग्ध हो गए। महाराजा ने उसके पास जाकर उससे पूछा, 'हे देवी तुम कौन हो?' उसने कहा, 'महाराजा मेरा नाम सत्यवती है और में निषाद कन्या हूं।' (उस काल में निषाद नाम की एक जाति होती थी)
महाराज उसके रूप-यौवन पर रीझकर उसके पिता के पास पहुंचे और सत्यवती के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर धीवर ने कहा, 'राजन्! मुझे अपनी कन्या का विवाह आपके साथ करने में कोई आपत्ति नहीं है, किंतु मैं चाहता हूं कि मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही आप अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाएं, तो ही यह विवाह संभव हो पाएगा।' निषाद के इन वचनों को सुनकर महाराज शांतनु चुपचाप हस्तिनापुर लौट आए और मन ही मन इस दुख से घुटने लगे। सत्यवती के वियोग में महाराज व्याकुल रहने लगे और उनका शरीर भी दुर्बल होने लगा।
महाराज की इस दशा को देखकर देवव्रत को चिंता हुई। जब उन्हें मंत्रियों द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण पता चला तो वे निषाद के घर जा पहुंचे और उन्होंने निषाद से कहा, 'हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाए इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा।'
उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर निषाद ने हाथ जोड़कर कहा, 'हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।' इतना कहकर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मंत्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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