Re: महाभारत के पात्र: द्रोणाचार्य
महाभारत के पात्र: द्रोणाचार्य
द्रोणाचार्य की अर्जुन पर विशेष कृपा
वापस आए अर्जुनकी दृष्टि वृक्षकी पत्तिओंपर पडना, उसमें जिज्ञासा निर्माण होना एवं भूमिपर लिखा हुआ वृक्षकी पत्तियोंको छेदनेका (वृक्षच्छेदनका) मंत्र पढकर उसने वह प्रयोग करना, इसके कारण पत्तियोंमें दूसरा छेद भी निर्माण होना : पश्चात गुरु द्रोणाचार्यजी सब शिष्योंके साथ स्नान करने गए । उसी समय अर्जुन धोती लेकर आया । उसकी दृष्टि वृक्षकी पत्तियोंपर पडी । वह सोचने लगा । इस वटवृक्षकी पत्तियोंपर पहले तो छेद नहींr थे । मैं जब सेवा करने गया था, उस समय गुरुदेवजीने शिष्योंको एक रहस्य बताया था । रहस्य बताया था, तो उसके कुछ सूत्र होंगे, प्रारंभ होगा, इसके चिह्न भी होंगे । अर्जुनने इधर-उधर देखा, तो उसे भूमिपर लिखा हुआ मंत्र दिखाई दिए । वृक्षच्छेदनके सामर्थ्यसेयुक्त यह मंत्र अद्भुत है, यह बात उसके मनमें समा गई । उसने यह मंत्र पढना आरंभ किया ।
जब उसके मनमें दृढ विश्वास उत्पन्न हो गया कि यह मंत्र निश्चित सफल होगा, तब उसने धनुष्यपर बाण चढाया और मंत्रका उच्चारण कर छोड दिया । इससे वटवृक्षकी पत्तियोंपर, पहले बने छेदके समीप दूसरा छेद बन गया । यह देखकर अर्जुनको अत्यंत आनंद हुआ । गुरुदेवजीने अन्य शिष्योंको जो विद्या सिखाई, वह मैंने भी सीख ली, ऐसा विचार कर, वह गुरुदेवजीको धोतीदेनेके लिए नदीकी ओर चल पडा ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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