Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
अभी भी ईश्वर के कठोरता की इति नहीं हुई। अभी भी मेरी परीक्षा शेष थी। जब मेरा अंत निकट था। मैं अपने शारीरिक कष्टों और आसन्न मृत्यु को देख व्यथित था। तब, पिता सूर्य और इंद्र मेरे कष्टों से द्रवित न हो , मेरे दानवीरता की सीमा जानने के बहस में लिप्त हो गए। मेरे दानवीरता को परखने के लिए भिक्षुक बन दोनों, मुझ से मेरे दाँतों में जड़ित तिल भर स्वर्ण की माँग कर बैठे। इंकार कैसे करता। मैंने ना बोलना नहीं सीखा है कभी। स्वर्ण टंकित दांत को कठोर पाषाण प्रहार से तोड़ भिक्षुक बने पिता सूर्य और इन्द्र को दे दिया था। अतः मुख भी आरक्त है। तप्त रक्त की धार मुख से बह कर मेरे संतप्त हृदय को ठंडक पहुंचने का प्रयास कर रही है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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