Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
आवेश में आ कर, स्वयंवर क्षेत्र की ओर कदम बढ़ाए। आधी शर्त मैंने धनुष को मोड़ और उस पर प्रत्यञ्चा चढ़ा पूरी भी कर ली। तभी कृष्ण ने नयनों के इशारे को देख धृष्ठधुम्म्न, द्रौपदी के जुड़वाँ भ्राता ने मेरी पहचान पर प्रश्न उठा, मुझे रोक दिया। कहा, मैं ब्राह्मण या राजपुत्र नहीं हूँ। पर मैं स्वयंवर मंडप में खड़े होने का भूल कर बैठा था। फलतः द्रौपदी के स्वयंवर में विद्रुप भरे अपमानजनक प्रश्नों की श्लाका से मुझे दागा गया।
सभी उपस्थित राजा, महाराजा मेरी ओर व्यंग बाणों की वर्षा करने लगे। जो मौन थे, उनके नेत्रों की व्यंग अग्नि मुझे झुलसा रही थी। गगन में प्रकाश बिखरते मेरे पिता ने मेरा अपमान देख, अपना मुख बादलों की ओट में कर लिया। सभागृह में बैठे सर्वज्ञ और युग द्रष्टा कृष्ण ने मौन रह मेरे साथ कपटपूर्ण व्यवहार किया। स्वयं मुझे मुक आमंत्रण देनेवाली द्रौपदी भी मौन रही। मेरा हृदय विदीर्ण हो गया। अपमानित, अनाथ, राधेय झुके नेत्रों से वापस अपने आसान पर आसीन हो गया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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