एक बहुत गरीब वृद्ध आदमी था जो गुब्बारे बेचता था लेकिन उसके गुब्बारों को कोई खरीदता नहीं था। वो रोज थका हारा खाली हाथ अपने घर आता था। उसका टूटा-फूटा सा घर पुलिस थाने के पीछे पड़ता था।
वो अपने काम पर जाने से पहले हर रोज एक पर्ची लिखकर और उस पर्ची को गुब्बारे में डाल कर भगवान को भेजता था।
वो पर्ची में एक बात रोज लिखता था कि हे भगवान! मेरे पास खाने को भी कुछ नही रहता, मुझे 50 हजार रुपए कैसे भी दे दीजिए, मैं आपका बहुत ही शुक्रगुजार रहूंगा।
ये पर्ची लिखा हुआ गुब्बारा हर रोज पुलिस थाने से ऊपर से गुजरता और पुलिसकर्मी रोज उस गुब्बारे को फोड़ पर्ची पढ़ते और उस वृद्ध की नासमझी पर मज़ाक उड़ाते लेकिन उन्हें उस वृद्ध पर बहुत दया भी आती थी।
एक बार सारे पुलिसकर्मी ने निश्चय किया कि क्यों ना, थोड़े-थोड़े पैसे इकट्ठा करके हम इस वृद्ध की इच्छा को पूरी करदे और ये रोज-रोज का झंझट भी खत्म हो जाये। सभी पुलिसकर्मियों ने मिलकर 25 हजार रुपये का चंदा इकट्ठा किया।
एक दिन शाम को सभी पुलिसकर्मी उस वृद्ध के घर गए और उसे इकट्ठे किये गए 25 हजार रुपये उस वृद्ध को सौंप दिए और बिना कुछ कहे ही वो वापस थाने चले आये। वृद्ध 25 हजार रुपये पाकर बहुत खुश हुआ।
अगले दिन सुबह हुई और सभी पुलिस कर्मी निश्चय थे कि अब कोई गुब्बारा नहीं आएगा लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा। एक गुब्बारा रोज की तरह उड़ता हुआ आया। पुलिसकर्मी को बहुत उत्सकता थी कि आज उसने क्या लिखा होगा।
जैसे ही गुब्बारा फोड़ के पर्ची निकाल कर पढ़ा तो सबके होश उड गए। पर्ची में लिखा हुआ था-
"हे प्रभु! आपके भेजे हुए पैसे तो मिल गए लेकिन आपको इन पुलिसवालो के हाथों से नहीं भेजना था।
इन कमीनो ने कमीशन काट के 25 हजार रुपये ही दिए।"