Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
लेकिन किसी को पता नहीं था कि विजय मरा नहीं है, वह एक पागलख़ाने में है. वहीं दूसरी तरफ अब गुलाबो की जिंदगी का एक ही मक़सद है कि वो विजय की किताब छपवाना चाहती है. वह मिस्टर घोष के पास जाती है और अपने ज़ेवरों की पोटली रख देती है. गुलाबो कहती है, ‘मेरी ज़िंदगी की सारी पूंजी… ये इन्हें छपवाने की क़ीमत है. मैं इससे ज्*़यादा और कुछ नहीं दे सकती. इनका छपना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है. अगर आप इन्हें छाप दें तो उम्र भर आपका एहसान मानूंगी.’
विजय की किताब छप गई है. किताब की जबरदस्त बिक्री होती है. एक दुकान के कोने में गुलाबो कहती है, ‘काश! तुम यह अपनी आंखों देखते!’.
दूसरी तरफ अस्*पताल में विजय लेटा है. बगल में बैठी नर्स ‘परछाइयां’ की नज़्म बोल बोल कर पढ़ रही है. जिसे सुनने के बाद विजय बिस्तर से उठ जाता है. यह देखकर नर्स चौंक जाती है और ‘डॉक्*टर!… डॉक्*टर!’ चिल्*लाने लगती है. डॉक्टर के आने पर विजय कहता है कि यह उसकी नज़्में हैं. विजय को सुनने के बाद डॉक्*टर ने कहा, ‘अजी साहब, जिस
विजय ने यह किताब लिखी है, वह न जाने कब के मर चुके हैं! ठीक से याद कीजिए… क्*या नाम है आपका?’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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