ग़ज़ल- मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से
ग़ज़ल- मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से
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मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से,
दिख जाये तो इसे दबा दो जूते से।
मौके तुम ख़ुशियों के मत जाने देना,
उनको छोड़ो जो हैं रूठे-रूठे से।
उसकी चिंता क्यों करते हो अक्सर ही?
जो बाहर है भाई तेरे बूते से।
किसके ग़म में रोज़ बहाते हो आँसू?
ये तो रिश्ते-नाते हैं सब झूठे से।
और तुझे 'आकाश' ज़माना तोड़ेगा,
अगर दिखोगे यूँ जो टूटे-टूटे से।
ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 07/12/2020
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वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी"
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
पिन- 274304
मो. 9919080399
Last edited by आकाश महेशपुरी; 15-12-2020 at 08:38 PM.
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