तबो समधी के जीव ललचाई रे (गीत)
तबो समधी के जीव ललचाई रे
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भले बारहो विजन परोसाई रे,
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
जवने सड़किया से समधी जी आइबि,
देबऽ बेला-चमेली बरसाई रे-
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
जवने कुरुसिया प समधी जी बइठबि,
देबऽ सोने के पालिश कराई रे-
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
जवने रे मेंजवा प समधी जी खाइबि,
देबऽ हीरा-मोती से जड़वाई रे-
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
जवने रे पनिया के समधी जी पीयबि,
ओहिमें अमरित तू देबऽ ढरकाई रे-
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
जवने सेजरिया प समधी जी सूतबि,
देबऽ मखमल के चादर बिछाई रे-
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
जवने सवरिया से समधी जी जाइबि,
ओहिमें भर भर के रुपिया ठुसाई रे-
तबो समधी के जीव ललचाई रे।
रचना- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 09/05/2000
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वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरनाथ
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
पिन- 274304
मो- 9919080399
Last edited by आकाश महेशपुरी; 10-08-2021 at 08:38 PM.
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