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आकाश महेशपुरी
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Default Re: तबो समधी के जीउ ललचाई रे (गीत)

संपादक के उपरांत

तबो समधी के जीउ ललचाई रे
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भले बारहो विजन परोसाई रे,
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

जवने सड़किया से समधी जी आइबि,
देबऽ बेला-चमेली बरसाई रे-
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

जवने कुरुसिया प समधी जी बइठबि,
देबऽ सोने के पालिश कराई रे-
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

जवने रे मेंजवा प समधी जी खाइबि,
देबऽ हीरा-मोती से जड़वाई रे-
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

जवने रे पनिया के समधी जी पीयबि,
ओहिमें अमरित तू देबऽ ढरकाई रे-
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

जवने सेजरिया प समधी जी सूतबि,
देबऽ मखमल के चादर बिछाई रे-
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

जवने सवरिया से समधी जी जाइबि,
ओहिमें भर भर के रुपिया ठुसाई रे-
तबो समधी के जीउ ललचाई रे।

रचना- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 09/05/2000
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वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरनाथ
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
पिन- 274304
मो- 9919080399
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