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Originally Posted by Bhuwan
लेकिन अनिल जी हमने तो ये देखा है की जो जितना शिक्षित हो वो उतना ही बदमास और स्वार्थी हो जाता है. ngo वाले शिक्षा प्राप्त करके समाजसेवा के नाम पर धड़ल्ले से अपनी जेबें भरते नजर आते हैं.
अपनी समझदारी विकसित करने के बजाए अपने आप को चालक बनाते हैं. अपने आप को एक मैनेजर के रूप में पेश करते हैं.
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भाई भुवन जहाँ तक ngo का प्रश्न हैँ मैँ लगभग दो साल काम कर के देख चुका हुँ रजीस्टर ngo था उसके वाउजुद मैँ बुरी तरह से ठगा गया जब की मैँने हर तरह से उस संस्था को आगे बढाने के लिए जी तोड मेहनत की लेकिन सचिव को सिर्फ ज्वाईनिँग के रकम से मतलब था हालाकी कुछ ngo जमीनी स्तर पर काम जरुर कर रहा हैँ उनका तादात 1% हैँ बाकी अपने जेब के लिए करता हैँ यह भी सच हैँ सरकार हर घर तक नहीँ पहुँच सकता हैँ और NGO एक अच्छा विकल्प हैँ लेकिन सरकार का फर्ज बनता हैँ जो अच्छे NGO हैँ उसे हीँ काम दे अन्यथा उसे ब्लैक लिस्ट कर दे कुछ NGO को बिहार मेँ मध्यान भोजन स्कुल मेँ सप्लायर का काम दिया हैँ लेकिन खाने की क्वालिटी इतना घटिया होता हैँ आए दिन इस बात का विवाद बन जाता हैँ इन सब चीजोँ के उपर सरकार नकेल कसे तब जाकर कुछ तो भला होगा