Re: रामचरित मानस से सीख
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥
भावार्थ:- जिनके मन में दूसरे का हित बसता है (समाया रहता है), उनके लिए जगत्* में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
परहित सरिस धर्म नही भाई । परपीरा सम नही अधमाई ॥
संसार मे दुसरो के हित करने के सामान कोइ धर्म नही है और दुसरो को दु:ख पहुचाना ही सबसे बड़ा अधर्म है ।
तात्पर्य ये है कि जीवन मे अपने स्वार्थ को साधने के लिये किसी को भी किसी का नुकसान करना सबसे बड़ा धर्म है । जहा तक समर्थ हो तब तक निस्वार्थ होकर दुसरो का हित करना ही मानव का परम धरम है ।
आप किसी का भला कर सकते हो तो करो ना तो ना करो क्योकि आप भगवान नही
पर जीवन मे किसी का भी बुरा ना करो क्योकि आप इंसान हो शैतान नही
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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