05-04-2011, 11:26 PM
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Re: अमृत-मंथन कथा
सागर मन्थन
दोहा: भव सागर मन्थन करि, रतन कह्यो सब देख ।
तेरह विष की बेलि है, अमिय पदारथ एक ॥ 1॥
भावार्थ: चिन्तन की भवधारा मे, एक समय की अनुभूति है, भवसागर मन्थन किया गया जिसके परिणाम स्वरुप उपलब्ध तेरह रत्न विष को बढाने वाले है और केवल अमृत ही ऐसा विलक्षण पदार्थ है जिसमे अनेकता नही जो सर्वथा अद्वितीय और अनुपमेय है ।
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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