क्या करे क्या न करे?(आचार-संहिता)
सभी मनुष्यमात्रका सुगमतासे एवं शीघ्रतासे कल्यण कैसे हो- इसका जितना गम्भीर विचार हिन्दु- संस्क्रुतिमे किया गया है, उतना अन्यत्र कही भी उपलब्ध नहि होता।
इसलिये भगवान गीता मे बडे स्पष्ट शब्दोंमें कहा हय-
"जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोडकर अपनी इच्छासे मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को, न सुख को ना परमगतिको ही प्रप्त होता है।
अतः तेरेलिये कर्तव्य अकर्तव्य के लिये शास्त्र ही प्रमाण है-ये जानके तू सिर्फ़ शास्त्र विधान से हि कर्म करने चाहिये।(गीता १६,२३-२४)तात्पर्य है कि हम- क्या करे,क्या न करे? इसकी व्यवस्थामें शास्त्रको ही प्रमाण मानना चाहिये। जो शास्त्र के अनुसार आचरण करते हैं, वे "नर" होते हैं और जो मनके अनुसर आचरण करते है वे वानर होते हैं। गीता मे भगवानने ऎसे आचरण करने वाले मनुष्य को असुर कहा है।
सभी पाठकोसे प्रार्थना है कि वे इस लेख का आध्ययन करे और इसमें आयी बातोंको अपने जिवन मे उतारनेकी चेष्टा करें॥
(प्रस्तुत लेख मे गीता प्रेस द्वारा प्रस्सिद्ध-१३८१ क्या करे क्या न करे?(आचार-संहिता) द्वारा-राजेंन्द्र कुमार धवल, मे से कूछ जिवन उपयोगि उक्तिया लि गई हैं।)