एक वादा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
वरना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं
जी में आता है उलट दें उनके चेहरे से नक़ाब
हौसला करते हैं लेकिन हौसला होता नहीं
शम्मा जिसकी आबरू पर जान दे दे झूम कर
वो पतंगा जल तो जाता है फ़ना होता नहीं
एक मुद्दत से रह-ओ-रस्म-ए-नज़ारा बन्द है
अब तो उनका तूर पर भी सामना होता नहीं
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