View Single Post
Old 30-10-2010, 06:26 PM   #9
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 08


एक दिन राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक बढ़ई आया। उसने राजा को काठ का, एक घोड़ा दिखाया और कहा कि यह ने कुछ खाता है, न पीता है और जहां चाहों, वहां ले जाता है। राजा ने उसी समय दीवान को बुलाकर एक लाख रुपया उसे देने को कहा।, "यह तो काठ का है और इतने दाम का नहीं है।" राजा ने चिढ़कर कहां, "दो लाख रुपये दो।" दीवान चुप रह गया। रूपये दे दिये। रूपये लेकर बढ़ई चलता बना, पर चलते चलते कह गया कि इस घोड़े में ऐड़ लगाना कोड़ा मत मारना।
एक दिन राजा ने उस पर सवारी की। पर वह बढ़ई की बात भूल गया। और उसने घोड़े पर कोड़ा जमा दिया। कोड़ा लगना था कि घोड़ा हवा से बातें करने लगा और समुद्र पार ले जाकर उसे जंगल में एक पेड़ पर गिरा दिया। लुढ़कता हुआ राजा नीचे गिरा मुर्दा जैसा हो गया। संभलने पर उठा और चलते-चलते एक ऐसे बीहड़ वन में पहुंचा कि निकलना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे वह वहां से निकला। दस दिन में सात कोस चलकर वह ऐसे घने जंगल में पहुंचा, जहां हाथ तक नहीं सूझता था। चारों तरफ शेर-चीते दहाड़ते थे। राजा घबराया। उसे रास्ता नहीं सूझता था। आखिर पंद्रह दिन भटकने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचा जहां एक मकान था। और उसके बाहर एक ऊंचा पेड़ और दो कुएं थे। पेड़ पर एक बंदरियां थी। वह कभी नीचे आती तो कभी ऊपर चढ़ती।
राजा पेड़ पर चढ़ गया और छिपकर सब हाल देखने लगा। दोपहर होने पर एक यती वहां आया। उसने बाई तरफ के कुएं से एक चुल्लू पानी लिया और उस बंदरिया पर छिड़क दिया। वह तुरन्त एक बड़ी ही सुन्दर स्त्री बन गई। यती पहरभर उसके साथ रहा, फिर दूसरे कुएं से पानी खींचकर उस पर डाला कि वह फिर बंदरिया बन गई। वह पेड़ पर जा चढ़ी और यती गुफा में चला गया।
राजा को यह देखकर बड़ा अचंभा हुआ। यती के जाने पर उसने भी ऐसा ही किया। पानी पड़ते ही बंदरियां सुन्दर स्त्री बन गई। राजा ने जब प्रेम से उसकी ओर देखा तो वह बोली, "हमारी तरफ ऐसे मत देखो। हम तपस्वी है। शाप दे देंगे तो तुम भस्म हो जाओंगे।"
राजा बोला, " मेरा नाम विक्रमादित्य है। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।"
राजा का नाम सुनते वह उनके चरणों में गिर पड़ी बोली, "हे महाराज! तुम अभी यहां से चले जाओं, नहीं तो यती आयगा और हम दोनों को शाप देकर भस्म कर देगा।"
राजा ने पूछा, "तुम कौन हो और इस यती के हाथ कैसे पड़ीं?"
वह बोली, "मेरा बाप कामदेव और मां पुष्पावती हैं। जब मैं बारह बरस की हुई तो मेरे मां-बाप ने मुझे एक काम करने को कहा। मैंने उसे नहीं किया। इसपर उन्होंने गुस्सा होकर मुझे इस यती को दे डाला। वह मुझे यहां ले आया। और बंदरियां बनाकर रक्खा है। सच है, भाग्य के लिखे को कोई नहीं मेट सकता।"
राजा ने कहा, "मैं तुम्हें साथ ले चलूंगा।" इतना कहकर उसने दूसरे कुएं का, पानी छिड़ककर उसे फिर बंदरिया बना दिया।
अगले दिन वह यती आया। जब उसने बंदरिया को स्त्री बना लिया तो वह बोली, "मुझे कुछ प्रसाद दो।"
यती ने एक कमल का फूल दिया और कहा, " यह कभी कुम्हलायगा नहीं और रोज एक लाल देगा। इसे संभालकर रखना।"
यती के जाने पर राजा ने बंदरिया को स्त्री बना लिया। फिर अपने वीरों को बुलाया। वे आये और तख्त पर बिठाकर उन दोनों को ले चले। जब वे शहर के पास आये ता देखते क्या है कि एक बड़ा सुन्दर लड़का खेल रहा है। अपने घर चला गया। राजा स्त्री को साथ लेकर अपने महल में आ गये।
अगले दिन कमल में एक लाल निकला। इस तरह हर दिन निकलते-निकलते बहुत से लाल इकट्ठे हो गये। एक दिन लड़के का बाप उन्हें बाजार में बेचने गया। तो कोतवाल ने उसे पकड़ लिया। राजा के पास ले गया। लड़के के बाप ने राजा को सब हाल ठीक-ठीक कह सुनाया। सुनकर राजा को कोतवाल पर बड़ा गुस्सा आया और उसने हुक्म दिया कि वह उसे बेकसूर आदमी को एक लाख रुपया दे।
इ़तना कहकर पुतली बोली, "हे राजन्! जो विक्रमादित्य जैसा दानी और न्यायी हो, वहीं इस सिंहासन पर बैठ सकता है।"
राजा झुंझलाकर चूप रह गया। अगले दिन वह पक्का करके सिहांसन की तरफ बढ़ा कि मधुमालती नाम की नंवी पुतली ने उसका रास्ता रोक लिया। बोली, "हे राजन्! पहले मेरी बात सुनो।"
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote