View Single Post
Old 30-10-2010, 08:42 PM   #23
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 21

किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा गुणी था। एक बार वह घूमते-घूमते कामानगरी में पहुंचा। वहां कामसेन नाम का राजा राज करता था। उसके कामकंदला नाम की एक नर्तकी थी। जिस दिन ब्राह्मण वहां पहुंचा, कामकंदला का नाच हो रहा था। मृदंग की आवाज आ रही थी। आवाज सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि राज की सभा के लोग बड़े मूर्ख हैं, जो गुण पर विचार नहीं करते। पूछने पर उसने बताया कि जो मृदंग बजा रहा है, उसके एक हाथ में अंगूठा नहीं है। राजा ने सुना तो मृदंग बजाने वाले को बुलाया और देखा कि उसका एक अंगूठा मोम का है। राजा ने ब्राह्मण को बहुत-सा धन दिया और अपनी सथा में बुला लिया। नाच चल रहा था। इतने में ब्राह्मण ने देखा कि एक भौंरा आया और कामकंदला को काट कर उड़ गया, लेकिन उस नर्तकी ने किसी को मालूम भी न होने दिया। ब्राह्मण ने खुश होकर अपना सबकुछ उसे दे डाला। राजा बड़ा गुस्सा हुआ कि उसी दी हुई चीज उसने क्यों दे दी और ब्राह्मण को देश निकाला दे दिया। कामकंदला चुपचाप उसके पीछे गई और उसे छिपाकर अपने घर में ले आयी। लेकिन दोनों डरकर वहां रहते थे। एक दिन ब्राह्मण ने कहा, "अगर राजा को मालूम हो गया तो हम लोग बड़ी मुसीबत में पड़ जायंगे। इसलिए मैं कहीं और ठिकाना करके तुम्हें ले जाऊंगा।"

इतना कहकर वह उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के यहां गया और उससे सब हाल कहा। राजा ब्राह्मण को लेकर अपनी फौज सहित कामानगरी की तरफ बढ़ा। दस कोस इधर ही डेरा डाला। इसे बाद विक्रमादित्य ने किया क्या कि वैद्य का भेस बनाकर कामकंदला के पास पहुंचा। ब्राह्मण की याद में वह बड़ी बेचैन हो रही थी। राजा ने कहा, "ऐसे ही हमारे यहां माधव नाम का एक ब्राह्मण था, जो विरह का दु:ख पाकर मर गया।" इतना सुनकर कामकंदला ने एक आह भरी और उसके प्राण निकल गये।

राजा ने लौटकर यह खबर ब्राह्मण को सुनायी तो उसकी भी जान निकल गई। राजा को बडा दु:ख हुआ और वह चंदन की चिता बनाकर खुद जलने को तैयार हो गया। इसी बीच राजा के दोनों वीर आ गये और उन्होंने कहा, "हे राजा! तुम दु:खी मत हो, हम अभी अमृत लाकर ब्राह्मण और कामकंदला को जिला देंगे।"

इसके बाद विक्रमादित्य ने कामानगरी के राजा से युद्ध किया और उसे हरा किया। कामकंदला उसे मिल गई और उसने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह ब्राह्मण से कर दिया।

पुतली बोली, "हे राजन्! तुममें इतना साहस हो तो सिंहासन पर बैठो।"

राजा चुप रहा गया।

अगले दिन उसे बाईसवीं पुतली अनूपरेखा ने रोककर यह कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote