19-04-2011, 06:40 PM
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#86
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Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार
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Originally Posted by kumar anil
देव जी ,
किस टूटते परिवार की बात कर रहे हैँ हम , पति पत्नी और एक जोड़ी बच्चे वाले परिवार की । भारतीय परिवार मेँ ऐसे कई परिवार समाहित रहते थे । भारतीय परिवार के बरगदी आकार को जब हमने अपनी निजता की चाह मेँ छाँटकर बोनसाई कर डाला , तो भला उससे छाँव की उम्मीद कैसे करेँ । उस विशाल वृक्ष की शाखाओँ को तोड़कर रोपने की क़ोशिश भला कैसे फलीभूत होगी । हम जो बोयेँगे , वही तो काटेँगे न । शाखाओँ मेँ जब जड़े नहीँ तो वे कैसे पुष्पित पल्लवित होँगी । तथाकथित स्वातन्त्रय , प्राईवेसी , निजता की कसमसाहट जब हमेँ बाप , दादाओँ , भाई बन्धुओँ से दूर रखने के लिये विवश करती है तो पति पत्नी के आपसी सम्बन्धोँ मेँ स्पेस की तलाश बेमानी नहीँ , अत्यन्त सहज है । इन परिणामोँ के लिये तो हमेँ तैयार रहना ही होगा । आधुनिकता का वरण रिश्तोँ का तो क्षरण करेगा ही । जब हम संवेदनाओँ , भावनाओँ , प्यार की तिलाँजलि अपने क्षुद्र अहं के लिये देकर एकल परिवार की नीँव डाल रहे थे तो भला कैसे भूल गये कि एक दिन हमारी भी नीँव दरकेगी और उसे मरम्मत करने वाले हमारे माँ , बाप , भाई रिश्तेदार की हैसियत से दूर विवश खड़े होँगे ।
एक बात और है जब 24 घण्टे हम एक ही रिश्ता जीते हैँ तब वस्तुतः कुछ समय उपरान्त रिश्ता ढोने लगते है क्योँकि रिश्ते हमेशा एक ताव पर नहीँ रहते परन्तु संयुक्त परिवारोँ मेँ ऐसा नहीँ होता । वहाँ हम एक साथ कई रिश्ते जीते हैँ जिसके फलस्वरूप छिद्रान्वेषी बन केवल एक ही रिश्ते की सतही मीमांसा नहीँ करते अपितु टुकड़े टुकड़े समस्त रिश्तोँ का आनन्द लेते हैँ । पति पत्नी की कलुषता को दूर करने वाले , उन्हेँ उपचारित करने वाले कई हाथ होते हैँ ।
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सही कहा भाई |
निजता की चाह में घर से दूर भागे पंछी जब खोच्किलों में रहते हुए ऊबने लगते हैं तब पुराने टीले की कीमत समझ आती है |
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