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:
छींटे और बौछार
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31-10-2010, 11:13 PM
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jai_bhardwaj
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मुझे वह सर्द रात याद है जब तुम मेरे सपनों में आयीं
नयी नयी दुल्हन की तरह शर्माते हुए मेरी बाहों में समायीं
मैंने चूमे तुम्हारे रक्तिम कपोल और दोनों गुलाबी अधर
सहलाने चाहे तुम्हारे केश, तो हीटर से 'जय' उंगलियाँ जलायीं
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।
कभी कभी -->
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