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Originally Posted by ndhebar
पंकज उधास,जगजीत सिंह की तुलना अल्ताफ राजा से
मामला कुछ जमा नहीं
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तौबा तौबा जगजीत सिंह की तुलना अल्ताफ राजा से तो खुद अल्ताफ भी नहीं कर सकते |
मेरा कहना का अर्थ था की अल्ताफ को सुनने वाले एक सीमित वर्ग से हैं जैसे ग़ज़ल गायकों के साथ होता है, अल्ताफ की शायरी सुनने के लिए दिल-ओ-रंज और रंज-ओ-दिल में फर्क तो पता होना चाहिए |
जैसे एक शेर अल्ताफ ने अपने गाने में कहा था की 'इक बेवफा के ज़ख्मों पर मरहम लगाने हम गए, मरहम की कसम मरहम ना मिला मरहम की जगह मर हम गए' अब शब्दों की इतनी बारीकी को समझने वाले कम हैं इसलिए इनका दायरा सीमित है |