पर काट दिए जिनके तुमने , छलनी कर डाली है छाती ,
सूरज को हसरत से तकते , फुटपाथों पर वे संपाती |
आवो इस नंगे मौसम कि , नंगे कि नब्ज टटोलेंगे ,
बारिश को झेलेंगे तन पर , क्यों ओढ़ रहे हो बरसाती |
मेरे कदमो को आवारा , होना हि था सों हो बैठे ,
अब समझाऊ कैसे तुमको , हर राह नहीं घर जाती |
मै पूछ रहा हू तुझसे ही , ऐ मेरे दौर बता मुझको ,
कितनी गर्मी से पिघलेगी , तेरी संगीने इस्पाती |
ये लोग बड़े है , होठो पर इनके है शब्द बड़े , लेकिन ,
कुछ अर्थ नहीं इनमे चाहे , ढूंढ़ो लेकर दिया -बाती |