Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
कालीन क्षत्रियों एवं मध्यकालीन राजपूतों की अवधि का अन्तराल इतना अधिक है कि दोनों के सम्बन्ध मूलवंश - क्रम से संबंधित करना संभव नहीं है। शक, सिथियन, हूण आदि विदेशी जातियाँ हिन्दू समाज में स्थान पा चुके थे और देश - रक्षक के रुप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। अत: उन्हें महाभारत तथा रामायण काल के क्षत्रियों से संबंधित कर दिया गया और सूर्य तथा चंद्रवंशी माना गया।
डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने विदेशी उत्पत्ति को अस्वीकार किया है। जिन रीति - रिवाजों के आधार पर राजपूतों और शकों का साम्य किया गया है वे रीति - रिवाज वैदिक काल तथा पौराणिक काल में भी भारत में विद्यमान थे। डॉ० ओझा ने अभिलेखों के आधार पर तथ्य प्रकट किया है कि मौर्य और नन्दवंश के पतन के बाद भी सातवीं सदी तक क्षत्रियों का
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