Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
अन्त में दुर्ग के रक्षकों ने निराश होकर भरतपुर नरेश को एक मर्मस्पर्शी भाषा में अपना अन्तिम प्रार्थना पत्र लिख भेजा। जिसमें उन्होंने उससे अपने आर्थिक कष्ट जनित असंतोष को खुले शब्दों में प्रकट किया। अपने स्वामी से अपना हार्दिक भाव प्रकट कर स्वामी भक्त रक्षकों ने वास्तव में अपने कर्त्तव्यों का यथोचित पालन किया था, परन्तु हृदयहीन भरतपुर नरेश पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भरतपुर नरेश की उदासीनता से झुंझलाकर अपने निर्वाह एवं प्राण रक्षा हेतु उन्होंने प्रताप सिंह को इस आश्य का प्रार्थना पत्र भेजा कि यदि वह उन लोगों का वेतन चुकाना स्वीकार करें, तो वे अलवर के दुर्ग उन्हें समर्पित करने के लिए प्रस्तुत हैं। प्रताप सिंह ने उनकी प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार किया और खुशालीराम की सहायता से रुपयों की व्यवस्था कर उनका और उनके सैनिकों का वेतन चुका दिया।
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'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो '
आपका दोस्त पंकज
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