Re: जीवन चलने का नाम।
देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन 12वी में दो बार फेल हुए। उनका वजीफा बंद हो गया। उन्हें क्लर्क की नौकरी करनी पड़ी। इससे पहले उन्होने मैट्रिक की परीक्षा पहले दर्जे से पास की थी। जिस गवर्नमेंट कालेज में पढ़ते हुये वे दो बार फेल हुए, बाद मे उस कालेज का नाम बदल कर उनके नाम पर ही रखा गया। पटना सहित कई शहरों में उनके नाम पर शिक्षण संस्थान हैं। तब उनकी प्रतिभा को समझने वाले लोग देश में नहीं थे। उन्होने तब के बड़े गणितज्ञ जी० एच० हार्डी को अपना पेपर भेजा। इसमे 120 थ्योरम (प्रमेय) थे। उन्हें कैम्ब्रिज से बुलावा आया। फेलो ऑफ रॉयल सोसाइटी से सम्मानित किया गया। उनके सूत्र कई वैज्ञानिक खोजों में मददगार बने। अगर रामानुजम 12वीं में फेल होने पर निराश हो गये होते, तो कल्पना कीजिए, दुनियाँ को कितना बड़ा नुकसान होता। ठीक है, सभी रामानुजम नहीं हो सकते, पर यह भी अकाट्य सत्य है कि हर किसी कि अपनी विशिष्टता है। इस विशिष्टता का व्यक्तिगत व सामाजिक मूल्य भी है। इसे नष्ट नहीं, बल्कि पहचानने व मांजने कि जरूरत है। फ्रांस के इमाइल दुर्खीम आत्महत्या पर शोध करने वाले पहले आधुनिक समाज विज्ञानी है। 1897 में उनहोंने इसके तीन कारण बताये, जिनमें पहला है आत्मकेन्द्रित होना। व्यक्ति का समाज से कट जाना। जिंदगी को अकेलेपन मे धकेलने के बदले, आइए हम खुद को सतरंगी समाज का अंग बना दे।
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