Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
तो शीला
शीला जब भी घर से बाहर निकलती कुछ आँखे उसका दामन थाम लेती..
उसको घर से निकालकर गली के लास्ट कोर्नर तक छोडके आती.. ( ऐसी आँखों का राम भला करे )
इधर शीला को मोहल्ले की आँखों ने छोड़ा और उधर बस स्टॉप पे खड़े लडको ने थामा..
साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज़ पे शीला के दामन को थामती आँखों की रिले रेस चलती रहती..
और जैसे ही शीला बस में चढ़ती कि वो टच स्क्रीन फोन बन जाती..
सब पट्ठे उसके सारे फीचर्स चेक कर लेना चाहते थे..
वैसे भी मोबाईल वही लेना चाहिए जिसमे सारे फीचर्स मौजूद हो..
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."
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