मेरी फ़ितरत ....
तुम्हारे हिस्से की सब धूप सहन कर लेता ;
मै पेड़ बन के तुझे उम्र भर साया देता .
हमारे हमसफ़र बन साथ चले चलते अगर ;
पलक पर रखता या फूलों का गलीचा देता .
तेरा यकीन जो मुझ पर ठहर गया होता ;
तेरी ताबीज़ बन ताउम्र हिफाज़त देता .
मै अगर जानता , तलवार तू भी रखती है ;
तो ख़ुद को म्यान से बाहर नहीं आने देता .
बिन तेरे जी नहीं पाऊंगा , पता होता अगर ;
बहस न करके , हाथ गूंगे - सा उठा देता .
वजूद खुद का तेरे प्यार में भुलाकर मै ;
मेरी ख़ुदी को तेरी ख़ुदी का रंग दे देता
चाँद , तू बादलों के पार छुपा बैठा है ;
चकोर किस तरह हालात का पता देता .
मेरी फ़ितरत तेरी फ़ितरत के करीब होती अगर ;
तू भी भूले न मुझे , बस ये श्राप दे देता .
रचयिता ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
गोमती नगर ,लखनऊ ,इंडिया .
(शब्दार्थ ~~ ख़ुदी = आत्म सम्मान , फ़ितरत = स्वभाव )
|